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नीतीश कुमार की नाकामी और ‘चीन का वुहान’ बना बिहार का सीवान
कोविड-19, चीन और WHO चीफ की चालाकियां
WHO चीफ गेब्रेयेसिएस व चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग। फोटोः इंटरनेट |
कोरोना की टेस्टिंग में फिसड्डी भारत, दावे बड़े दर्शन छोटे
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हालांकि, स्पेन औऱ इटली में हालात धीरे-धीरे काबू में आ रहे हैं। इसकी वजह लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपाय तो हैं ही, लेकिन उसमें कोरोना टेस्टिंग का भी बहुत बड़ा योगदान है। इसी में भारत बहुत पिछड़ रहा है। अब आंकड़ों पर नजर डालें, तो ये देश और इनसे और भी छोटे-छोटे देश (आबादी के हिसाब से) हमसे टेस्टिंग में कहीं आगे हैं। अब अमेरिका को ही लें। अमेरिका की आबादी 32.82 करोड़ है और उसने अभी तक 27 लाख 81 हजार 460 लोगों की टेस्टिंग कर ली है। स्पेन हमसे आबादी में कहीं पीछे है। लगभग 4.69 करोड़ की आबादी वह देश कोरोना से बुरी तरह प्रभावित देशों में एक है। इसने अभी तक 3 लाख 55 हजार टेस्टिंग की है। इटली की आबादी 6.04 करोड़ है। कल तक यहां कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा मौतें हुई थीं। आज अमेरिका में मौतों की संख्या इससे ज्यादा हो चुकी है। इटली ने 10 लाख 10 हजार 193 टेस्ट किए हैं। यूरोप के जिन चार देशों में कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा तबाही मचाई है, उनमें फ्रांस भी है। इसकी आबादी 6.7 करोड़ है, जबकि यह 3 लाख 33 हजार से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग कर चुका है। जर्मनी में 1 लाख 26 हजार 921 केस आ चुके हैं। इसकी आबादी 8.3 करोड़ है और यहां 13लाख 18 हजार के आसपास लोगों की टेस्टिंग की जा चुकी है।
इनकी छोड़िए अपने एशिया में ही आते हैं। चीन के बाद ईरान एशिया का सबसे प्रभावित देश है। यहां 71 हजार 600 से ज्यादा केस संक्रमण के आए हैं और इसने 2लाख 63हजार से ज्यादा लोगों की अभी तक टेस्टिंग की है। तुर्की को ही ले लीजिए 8.2करोड़ की आबादी वाले देश में कोरोना के लगभग 57 हजार मरीज हैं औऱ इसने 3लाख 76हजार सैंपल टेस्ट कर लिए हैं। उससे भी अचरज तो यह लगेगा कि 5.16 करोड़ की आबादी वाले दक्षिण कोरिया में 10 हजार 500 से कुछ ज्यादा ही मरीज हैं और यहां लगभग 215 लोगों की अभी तक मौत हुई है, लेकिन इसने 5लाख 14हजार से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग की है।
वहीं, भारत 1 अरब 33 करोड़ की आबादी वाला देश है। अमेरिका से इसकी आबादी 1 अरब अधिक है। दक्षिण कोरिया के बराबर केस सामने आ चुके हैं, लेकिन अभी तक टेस्टिंग सिर्फ 1 लाख 90 हजार के आसपास हुई है। अब इस पर भी हम ढिंढोरा पीटें कि हमारे यहां तो मामले भी कम आ रहे हैं। तो कम-से-कम दक्षिण कोरिया से ही सबक ले लें। या फिर रूस से ही ले लें। 14.65 करोड़ की आबादी वाले रूस में 15 हजार 700 से ज्यादा मामले आ चुके हैं और इसने कम मामलों के बावजूद 12 लाख से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग कर ली है। साफ मतलब है कि ज्यादा टेस्टिंग यानी मौतें कम। लेकिन, हम इसी में फिसड्डी साबित हो रहे हैं और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन नामक दवा को लेकर खामखां अपनी सीना चौड़ा कर रहे हैं। जबकि हमारा पूरा जोड़ अभी लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपायों के साथ टेस्टिंग पर होना चाहिए।
नोटः आंकड़े 12 अप्रैल तक के हैं।
कोविड-19 और चीन की शातिर कूटनीति पर भारी ताइवान की मास्क डिप्लोमेसी
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अब वह मास्क डिप्लोमेसी के जरिए वैश्विक परिदृश्य में अपनी मजबूत धमक या कूटनीतिक पहुंच साबित कर रहा है। हम जानते हैं कि कोरोना वायरस महामारी ने बुनियादी चिकित्सा उपकरणों और सामानों की सप्लाई को पूरी तरह से बदल दिया है। कई देशों में इस मुश्किल घड़ी में फेस मास्क, दस्ताने और गाउन जैसे महत्वपूर्ण सामानों की भारी कमी हो गई है। कई देश पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) के निर्यात प्रतिबंध लगा रहे हैं। वहीं कई देश इनके आयात के के लिए बेचैन हैं, क्योंकि वहां इसकी कमी की वजह से खतरा बढ़ता जा रहा है। मेडिकल जरूरतों की सप्लाई इससे पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कभी भी बाधित नहीं हुई, क्योंकि देश पहले अपना हित देख रहे हैं। इसकी वजह है कि इनका उत्पादन करने वाले देश खुद कोरोना वायरस महामारी की भारी चपेट में हैं। ताइवान इन उत्कृष्ट स्तर के मेडिकल मास्क का दुनिया के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में एक है। ताइवान उन चुनिंदा देशों में भी है, जिसने कोविड-19 से सफलतापूर्वक निपटा है। अब इसके पास इस अवसर का लाभ उठाने का एक दुर्लभ अवसर है कि वह अपने खिलाफ लंबे समय से चल रहे चीन विरोधी राजनीति का लाभ उठा सके। उसे अपने पत्ते सावधानी से खेलने होंगे। खासतौर पर अमेरिका के साथ।
ताइवान की आबादी सिर्फ 2.3 करोड़ है और वह चीन के बाद फेस मास्क का दूसरा सबसे बड़ा वैश्विक उत्पादक है। यानी दुनिया में चीन के बाद ताइवान ही सबसे अधिक फेस मास्क बनाता है। यह हर रोज तकरीबन 1.5 करोड़ मास्क का उत्पादन करता है। चूंकि दुनिया में अब इसी मांग बड़ी तेजी से बढ़ी है, तो यह एक दिन में 1.7 करोड़ मास्क का उत्पादन कर रहा है।
अमेरिका में अभी तक कोरोना वायरस से सबसे अधिक मौतें 23 हजार से ज्यादा हुई हैं और यहीं सबसे अधिक संक्रमित 5 लाख 87 हजार से अधिक लोग हैं। वह ताइवान के मास्क निर्यात का लाभ उठाने के लिए तैयार है, क्योंकि उसे अभी बड़ी बेसब्री से इसकी जरूरत है। मार्च में ताइवान ने अमेरिका को हर सप्ताह लगभग 100,000 सर्जिकल मास्क दान करने का वादा किया था। बदले में अमेरिका ने ताइवान को 300,000 हाजमत सूट देने पर सहमत हुआ। इसके बाद ताइवान ने 1 अप्रैल को घोषणा की कि वह दुनिया के सबसे अधिक जरूरतमंद देशों को 1 करोड़ मास्क दान करेगा। इसमें अमेरिका के लिए अलग से उसने 20 लाख मास्क देने का वादा किया। इसी सप्ताह उसने अमेरिका को 400,000 मास्क दिए। पिछले कुछ दिनों में ताइवान ने अपने कूटनीतिक रूप से सहयोगी देशों के साथ-साथ इटली, स्पेन, फ्रांस, नीदरलैंड और यूनाइटेड किंगडम जैसे कोरोना से सबसे प्रभावित यूरोपीय देशों को मास्क और पीपीई दिए।
उधर, चीन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात को लेकर खूब आलोचना हुई कि उसे महामारी फैलने की शुरुआत में ही दुनिया को आगाह नहीं किया और मामले को दबाता रहा, जिससे आज यह महामारी घातक हो चुकी है। चीन इसकी काट के तौर पर एक अलग बहस छेड़ने की कोशिश करता रहा। इसने अमेरिका की तुलना में खुद को महामारी से सबसे प्रभावित यूरोपीय देशों का भरोसेमंद सहयोगी साबित करने की कोशिश की। इन प्रयासों के तहत उसने पूरे यूरोप में चिकित्सा उपकरण,पीपीई और दवाइयां भेज रहा है। चीनी कंपनियां भी अपनी सरकार का समर्थन कर रही हैं।
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ऐसे में अमेरिका की मदद से ताइवान के पास खुद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से पेश करने का मौका आया है। वह भी ऐसे समय में जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से वह बाहर है, उसे चीन के दबाव में इस संगठन का सदस्या नहीं बनाया गया। इसके बावजूद ताइवान ने कोरोना वायरस पर काबू पाया है। दरअसल, डब्ल्यूएचओ की सदस्यता केवल उन देशों मिलती है, जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं। ताइवान को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता नहीं मिली है। कोरोना वायरस महामारी के बीच कनाडा, यूरोपीय संघ, जापान और अमेरिका ने WHO से ताइवान को सदस्यता देने की अपील की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कोरोना वायरस पर आपातकालीन बैठकों और महत्वपूर्ण ब्रीफिंग से ताइवान को दूर रखा गया।
डब्ल्यूएचओ इस महामारी से निपटने की कोशिशों को लेकर लगातार चीन की तारीफ करता रहा। इससे कुछ देशों ने उस पर चीन का पक्षधर होने का आरोप भी लगाया। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने तो यहां तक कह दिया कि डब्ल्यूएचओ को इस महामारी में पूरी तरह से ‘चीन-केंद्रित’ है। ट्रंप ने इसकी फंडिंग रोकने की भी धमकी दी। इस पर डब्ल्यूएचओ के महासचिव ने ट्रंप को ‘इस महामारी का राजनीतिकरण’न करने की अपील की। टेड्रोस ने ताइवान के नेताओं पर नस्लवादी टिप्पणी और हत्या की धमकी देने का भी आरोप लगाया। ताइवान ने उनके दावे को सिरे से खारिज कर दिया।
ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका और ताइवान के बीच संबंध पहले की ही तरह मजबूत रहे हैं और कहा जाता है कि ट्रंप अमेरिकी इतिहास में शुरू से सबसे अधिक ताइवान समर्थकों में एक माने जाते हैं। अब कोरोनो वायरस संकट ने दोनों को और भी करीब ला दिया है। अमेरिकी-चीन के तनावों के बीच ट्रप ने 26 मार्च को ताइवान अलाइज इंटरनैशनल प्रोटेक्शन ऐंड अन्हांसमेंट इनिशिएटिव (TAIPEI) अधिनियम पर हस्ताक्षर किए। यह अधिनियम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ताइवान को अमेरिका का खुला समर्थन का प्रतीक है।
मौजूदा समय में चीन और अमेरिका के बीच तकरार बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ ताइवान खुद को बेहतर स्थिति में ला रहा है। अब अमेरिका और ताइवान के बीच कोई मोहरा नहीं है। ताइवान खुद अपने बूते खड़ा हो रहा है।
यह कैसा लॉकडाउन, किसकी सरकार...किसी के लिए स्पेशल फ्लाइट, किसी को लाठी और मार
मुंबई के बांद्रा में जुटी भीड़। फोटोः इंटरनेट |
मोदी के भारत में कोरोना वायरस ने बढ़ाई हिंदू-मुसलमानों की खाई
अब कहानी को थोड़ा मोड़ते हैं। बात 12 अप्रैल की है। तमिलनाडु के मदुरै में जलीकट्टू और धार्मिक यात्राओं में शामिल होने वाले एक बैल के अंतिम संस्कार में हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ जुट गई। 15 अप्रैल की बात है। मुंबई के बांद्रा की ही तरह दिल्ली में हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर यमुना किनारे जमा हो गए। राजस्थान के जैसलमेर के पोखरण क्षेत्र में भी मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन जैसे हालात पैदा हो गए। देश में लॉकडाउन को फिर से 3 मई तक बढ़ाने की घोषणा के बाद प्रवासी मजदूर यहां जुटने लगे। कुछ ही समय में सैकड़ों प्रवासी मजदूर परिवार सहित सड़कों पर उतर आए। इनमें अधिकांश यूपी और बिहार राज्यों के कामगार थे, जिनकी मांग थी कि उन्हें अपने-अपने राज्य लौटने की इजाजत दी जाए। भले ही ट्रेन या बस से नहीं, तो पैदल ही, लेकिन जाने दिया जाए।
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लॉकडाउन: छबू मंडल की मौत सुसाइड नहीं, हत्या है! और, जिम्मेदार यह सरकार है
छबू मंडल की पत्नी और उनके बच्चे। Photo: Indian Express |
सरकार के दावे बड़े-बड़े कि इस लॉकडाउन में अपने किराए पर रहने वालों की मदद करें। कुछ महीनों का माफ करें या किसी भी तरह से मदद करें, लेकिन हो उल्टा रहा है। मंडल की पत्नी पूनम कहती हैं, ‘इस संकट में मकान मालिक की तरफ से एक-दो बार किराए के लिए पैसे की मांग की गई, जिससे उन पर दबाव बढ़ा।’वह कहती हैं, ‘एक दिन मेरे पति ने फैसला किया कि वह अपना फोन बेच देंगे, जिसे उन्होंने 10 हजार रुपये में खरीदा था, ताकि राशन के लिए कुछ सामान खरीदा जा सके।’
पालघर मॉबलिंचिंगः मर्ज को जाने बिना इलाज नामुमकिन है
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लोकतंत्र को लगा कोरोना रोग, हुआ वायरस से संक्रमित
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हिंदुस्तान किससे लड़ रहा है? कोरोना या फिर मुसलमानों से...
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कोरोना संकट, चीन का WHO और UN में वर्चस्व, अभी असली खेल बाक़ी है
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डॉक्टरों के काट रहे पैसे, पैदल चलते हुए मर जा रहे लोग...तो यह किसका सम्मान है साहेब?
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कोरोना संकट, इटली का सिसली वाया ‘द गॉडफादर’ डॉन विटो कॉर्लियोन
इतालवी माफिया सेत्तिमो मिनेयो |
कोरोना वायरसः जो 102 साल पहले की गलतियों को दोहराए उसका नाम अमेरिका है...
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प्रधानमंत्री जी कह दीजिए मैं झूठ नहीं बोलता, क्योंकि आपके वादे चीख-चीखकर झूठ की गवाही दे रहे हैं
अगर इन हताश प्रवासी मजदूरों की पीड़ा प्रधानमंत्री की आत्मा को नहीं झकझोर पा रही है, तो आख़िर क्या बचता है?सऊदी अरब से लोगों को लाने के लिए पांच उड़ानें...इन मजदूरों के नसीब में हाईवे पर पैदल चलने की मजबूरी है, क्योंकि प्रधानमंत्री चाहते हैं किइस देश की जो सुविधाएं अमीरों को प्राप्त वह मेरे देश के गरीबों को भी मिलनी चाहिए। क्या यही वे सुविधाएं हैं, जो अमीरों को मिल रही है?
कोरोना संकट में भी गेस्ट टीचरों का हक छिनती सरकार, केजरीवाल-भाजपा सब मिले हुए हैं
PM Modi, DElhi CM Kejriwal and Sisodia. Pic: Internet |
Delhi BJP Chief Manoj Tiwari. Pic: Internet |
मजदूरों का पलायनः आख़िर भागने की चुल काहे मची है इनको? कभी घर से तो कभी घर को भागना...
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लॉकडाउन में पलायनः यह अंधा नहीं, सुप्रीम कोर्ट का धंधेबाज कानून है...
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देशव्यापी लॉकडाउन की वजह मजदूरों के पास अब नौकरी और रहने के लिए ठिकाना नहीं है। इस वजह से हजारों मजदूर हजारों किलोमीटर दूर अपने गांवों की ओर जा रहे हैं। कोई पैदल चल रहा है, तो कोई साइकल चलाकर जा रहा है तो कोई ट्रक पर बैठकर अपने गांव जा रहा है। लेकिन जज साहब को इन मामलों पर सुनवाई से क्या मतलब?जज साहब को तो बस खास बंगले, सड़क पर आवारा पशुओं के घूमने से आपत्ति होती है, गाड़ी के शीशे पर काली फिल्म की मोटाई से दिक्कत होती है?इन सब मामलों पर सुनवाई के लिए बहुत समय है। दरअसल, मजदूरों का मामला गरीबी से जुड़ा है। इन मामलों की सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का कोई हित नहीं जुड़ा है। मामला जैसे ही राजनीतिक या फिर अमीरों से जुड़ा हो तो जज साहब तुरंत कुर्रसी लेकर बैठ जाएंगे और फैसला भी उनके हक में सुना देंगे। लेकिन पैदल चल रहे बेबस प्रवासी मजदूरों के हादसों की याचिका पर सुनवाई से साफ मना कर देंगे।
महंथजी की सरकार और यूपी पुलिस की लाठियों से छलकती 'मर्दानगी'
Note...All Video from Social Media
तो क्या ज़ी न्यूज के संपादक ने ऑफिस आने के लिए साथी पत्रकारों को धमकी दी...
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लॉकडाउन में पलायनः 16 दिन की बच्ची, 40 डिग्री सेल्सियस की धूप... शर्म तो नहीं ही आती होगी सरकार
हमारे घरों में जब बच्चे का जन्म होता है, तो मां और बच्चे को कितने ख्याल से रखा जाता है यह तो मिडिल से क्लास से लेकर सोशल मीडिया वाले क्लास को भी बखूबी पता ही होगा। जब कोई महिला बच्चे को जन्म देती है,तो संवर कहे जाने वाले 15 दिन के पीरियड में मां-बच्चे को बाहर की हवा नहीं लगने दी जाती, लेकिन गरीबों पर यह भला कब से लागू होने लगा...
सुमन अपनी बच्ची के साथ। फोटोः ट्विटर |
लॉकडाउन में भूख से मरते ग़रीब, लेकिन गिद्धभोज में जुटे हैं सत्ता के सरमायेदार
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इकोनॉमी, कोरोना अब चीन-नेपाल, हमारा लीडर बजा रहा बस गाल
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भारत-पाकिस्तान... दो मुल्क, पर राजनीति एक!
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गृह राज्य मंत्री का बेटा... जज साहेब अदालतें मंदिर की घंटी बन चुकी हैं...
देश की न्याय व्यवस्था मंदिर के घंटे की तरह हो गई है। कोई भी आ रहा है और बजाकर चला जा रहा है। मंदिर के घंटे को बजाने का भी एक तय समय होता है, लेकिन न्याय व्यवस्था के साथ जिस तरह घंटी बजाई जा रही है, उसका को नियत समय नहीं है। देश के गृह राज्य मंत्री के बेटे से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर तक इस सिस्टम की घंटी नहीं, बैंड बजा रहे हैं। बस उम्मीद सिर्फ आम जनता, दबे-कुचले लोगों, जिनके पास दौलत नहीं है, प्रभावशाली नहीं है, उनसे की जाती है कि वे देश के तमाम कायदे-कानून को सर पर बिठाकर रखें। हालिया घटनाक्रम ने इस मीडिया, न्यायिक, पुलिसिया और राजनीतिक सिस्टम में भरोसे को खाई में ही धकेलने का काम किया है।
बॉलिवुड के बादशाह शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान इन दिनों मुंबई के ऑर्थर रोडजेल में बंद हैं। अदालत ने आर्यन को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा है।मामला क्रूज रेव पार्टी से जुड़ा है। शनिवार को कुल 18 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। आर्यन खान के वकील ने मैजिस्ट्रेट कोर्ट में जमानत की अर्जी दी। खारिज हो गई। शनिवार को वकील ने सेशन कोर्ट का रुख किया। मामला खींचेगा। इस बीच, समझने की बात है कि शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान के पास से किसी भी तरह का ड्रग्स नहीं मिला है। एनसीबी के हवाले से कई मीडिया संस्थान खबरें चला रहे हैं कि आर्यन ने माना है कि ड्रग्स का सेवन किया। जमानत पर सुनवाई के दौरान कोर्ट में आर्यन के वकील ने मैजिस्ट्रेट को बताया कि आर्यन खान ने ड्रग्स को लेकर अपना ब्लड टेस्ट देने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन एनसीबी के अधिकारियों ने सैंपल लेने से मना कर दिया। दो बातें साफ हैं...1. आर्यन खान के पास से ड्रग्स नहीं मिला। 2. सेवन का शक था, तो एनसीबी ने मेडिकल क्यों नहीं कराया यानी यहां भी आर्यन से कुछ हासिल नहीं हुआ।
अब चलते हैं उत्तर प्रदेश के लखमीपुर खीरी। यहां केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे पर चार किसानों पर खुलेआम जीप चढ़ा देने का आरोप है। मंत्री जी बेटे का बचाव करते रहे। आरोपी बेटा अपना बचाव करता है। हक है, करिए। लेकिन हत्या के आरोपी की गिरफ्तारी कब होती है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘क्या हत्या के दूसरे के मामले में पुलिस इसी तरह मंत्री जी के बेटे की तरह नोटिस भेजकर बुलाती।’दुनिया जानती ही कि अगर आम आदमी छोटा-मोटा अपराध कर दे, तो हवालात की हवा खाने तुरंत भेज दिया जाता है। यहां मंत्री जी के बेटे की आवभगत होती रही। हत्या के आरोपी को 5-6 दिनों के बाद गिरफ्तार किया गया। मंत्री जी के बेटे को भी 14 दिनों के न्यायिक हिरासत में भेजा गया। आर्यन खान के पास से ड्रग्स बरामद भी नहीं हुआ, फिर भी पहले वह दो-तीन दिनों तक एनसीबी की हिरासत में रहा। फिर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में। यहां मंत्री जी का बेटा, चार लोगों पर गाड़ी चढ़ाने के चार दिन बाद तक मौज करते रहे, फिर 10 घंटे पूछताछ हुई। फिर गिरफ्तारी के बाद अरेस्ट किया गया। दूसरी बात यह कि जिसके पास से ड्रग्स तक बरामद नहीं हुआ, न सेवन का पता करने के लिए मेडिकल कराया गया। उधर, गुजरात के अडानी मुंद्रा पोर्ट से 3000 किलोग्राम की हेरोइन बरामद हुई। इस मामले में एनसीबी की सक्रियता किसी मुर्दा की तरह नजर आती है।
एनसीबी का कहना है कि आर्यन खान के वॉट्सऐप चैट से पता चलता है कि मुमकिन है कि वह नियमित तौर पर ड्रग्स का सेवन करता हो। यानी एनसीबी कंफर्म नहीं है। आर्यन के वकील ने कहा कि फुटबॉल के बारे में चैट है। एनसीबी का यह भी कहना है कि यह संभव है कि गिरफ्तार लोगों के तार जुड़े हो और उन्होंने पार्टी में शामिल होने की योजना बनाई। इससे आर्यन खान ने इनकार किया। एनसीबी का बड़ा दावा है कि आर्यन खान एक प्रभावशाली परिवार से हैं। अगर उन्हें जमानत पर छोड़ा गया तो वह सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं। बिल्कुल सही बात है कि आर्यन एक प्रभावशाली परिवार से ताल्लुक रखता है, तो क्या मंत्री जी का बेटा किसी चरवाहे के घर का है, जिसके पास फूस का घर है औऱ वह किसी सबूत से छेड़छाड़ नहीं कर सकता। इसीलिए पुलिस उसे चार-पांच दिनों तक छुट्टा छोड़े रखती है। फिर पूछताछ के लिए आने के लिए नोटिस भेजती है। जरा सोचिए, क्या आपको इस तरह की छूट मिलती? हत्या का आरोप ही छोड़िए, किसी की गाड़ी का एक्सिडेंट ही हो जाता और गलती से कोई जख्मी हो जाता तो भी इतनी रियायत आपको मिलती क्या?यहां मंत्री जी का बेटा पुलिस के नोटिस भेजने के एक दिन बाद तब आता है, जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचता है। सुप्रीम कोर्ट जैसा कि इस तरह के मामलों में रिवाज है, सख्त टिप्पणी के बाद मामले को लंबे समय के लिए बोरिया-बिस्तर में डाल देता है। पेगासस जासूसी वाले में जिस-जिस दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, अखबारों के पहले पन्ने पर हेडिंग बनी खबर। लेकिन अब उस मामले का क्या हुआ? इसी तरह लखीमपुर खीरी मामले में एक दिन की सुनवाई के बाद जज साहेब लोग छुट्टी पर चले गए और सुनवाई छुट्टियों के बाद करेंगे। जनता की जिंदगी की कीमत का फैसला छुट्टियों के बाद होगा।